नजरिया संवाद, संतोष यादव धमदाहा /पूर्णिया ।
लगभग 6 दशक से अधिक समय से जिस जमीन को उनके पुरखे जूता वाडकर परिवार का भरण पोषण करते आ रहे थे। वह जमीन ना जाने और कितनी जाने लेगी। यही कहना है संख्या गांव के उरांव आदिवासी परिवार के लोगों का संख्या गांव के पांच दर्जन से अधिक उरांव आदिवासी परिवार के लोग कहते हैं कि उनके पुरखे 1940-45 से ही उसे खेत को जोत आवाज बटाईदार के रूप में कर रहे थे तो 1990 में अंचल कार्यालय द्वारा लाल कार्ड वितरण में मनमानी करने के कारण उत्पन्न हुए विवाद में अब तक 7 लोगों की जान जा चुकी है। हालांकि 4 लोगों की जान शनिवार को पूर्णिया-टीकापट्टी मुख्य पथ पर अगस्त नगर के समीप बस द्वारा धमदाहा की ओर से जा रही टेंपो में सामने से टक्कर मारे जाने के बाद सुंगठिया गांव के मारे गए 4 लोग बब्जा उरांव, जीतेंद्र उरांव अनूप लाल उरांव एंव डोमी उरांव की लाश गांव आते ही सबकी जुबान पर एक ही सवाल है कि आखिर सुरजउगा बहियार की लाल कार्ड की जमीन और कितनी जान लेगी। सुरजउगा बहियार के जमीन की लड़ाई 1990-91 में अंचल कार्यालय धमदाहा द्वारा आदिवासी के कब्जे की जमीन महा दलित में बांटे जाने के बाद से चल रहा है तो विगत 33 वर्षों में जोत की जमीन की लड़ाई खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया है। वर्ष 1998 में जमीन जोतने के लिए गई ट्रैक्टर को लोगों ने आग के हवाले कर दिया तो वहीं 1998 में ही कुसुम लाल उरांव की हत्या कर फेंक दिया गया कुछ ही दिन के बाद ही रामचंद्र उरांव की क्षत-विक्षत लाश ग्रामीणों ने नहर किनारे से बरामद किया था तो अभी से 5 वर्ष पूर्व सुंगठिया गांव के आदिवासी नेता हरिश्चंद्र उरांव की हत्या कर लाश को बिहार में फेंक दिया था हालांकि ट्रैक्टर जलाने के बाद हत्या के तीनों ही मामले में धमदाहा थाना में प्राथमिकी दर्ज हुई तो कुछ लोग जेल भी गए परंतु उस जमीन के समस्या का आज तक निदान नहीं निकाला