भरगामा/अररिया। भरगामा प्रखंड क्षेत्र में महिलाओं ने एक दिन का उपवास रखकर काफी धुमधाम व श्रद्धापूर्वक चौठचन्द्र पर्व मनाया। मिथिला की समृद्ध व गौरवशाली संस्कृति तथा लोक परंपरा का अद्वितीय पर्व चौठचन्द्र है अपनी सांस्कृतिक विरासत को इस पर्व के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी मनाने की परंपरा चली आ रही है। आम बोलचाल की भाषा में इसे चौरचन पर्व के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर वर्ष भाद्र शुक्ल पक्ष चौठ तिथि को मनाया जाता है। मिथिला में यह पर्व वैदिक काल से मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है। स्कंद पुराण में भी चौठचंद्र की पद्धति तथा कथा का व्रत वर्णन किया गया है।

मिथिला में इसे पान, सुपारी, पूजन सामग्री, नाना प्रकार के पकवान तथा मिठाइयों से डाली को सजाती है। गणपत्यादि पंचदेवता गौरी रोहिणी सहित भाद्र शुक्ल चौथ चंद्रमा की पूजा की जाती है। वैदिक मंत्रों से डालियों तथा दही के बर्तनों पर अर्घ्य देकर अघोर उत्सर्ग करती है। मिथिला में ऐसी मान्यता चली आ रही है कि इस पर्व को करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। रोग शोक तथा क्लेश का शमन होता है। महिलाए एक दिन का उपवास रखकर इस पर्व को मनाती है।