दुर्केश सिंह
नजरिया न्यूज़ विशेष संवाददाता, सुल्तानपुर। आजादी की लड़ाई क्यों लड़ी गई थी? अधिक कर का विरोध अंग्रेजों के जमाने में मुंशी प्रेमचंद ने किस प्रकार किया था?
यह 2 सवाल नजरिया न्यूज़ ने लौह पुरुष रामबरन नेता से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर किया।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 80 वर्षी रामबरन नेता ने कहा कि किसी भी परिवार को परवरिश की चिंता नहीं होनी चाहिए। यह आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा लक्ष्य था। शोषणमुक्त समाज की स्थापना आजादी की लड़ाई का दूसरा लक्ष्य था।
रामबरन नेता ने कहा कि आजादी के 77वीं वर्षगांठ के बहुत पहले
प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा सरकार के कार्यकाल में दो रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल का कानून बन जने से परिवार की परवरिश की चिंता से भारतवर्ष का प्रत्येक परिवार मुक्त हो चुका है।
आजादी की लड़ाई का दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य शोषणमुक्त समाज की स्थापना का था। देश को इससे मुक्ति अभी तक नहीं मिली है।
लोह पुरुष रामबरन नेता ने कहा कि शोषण मुक्त समाज की स्थापना का सपना जिस दिन पूरा हो जाएगा, उसे दिन भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बन जाएगा। देश में गरीबी का निशान तक नहीं दिखेगा।
अधिक कर का विरोध अंग्रेजों के जमाने में देश कैसे करता था?
इसका उत्तर देते हुए
मार्क्सवादी नेता रामबरन ने नमक का दारोगा कहानी का सारांश सुनाया। नमक का दारोगा कहानी का केंद्रीय भाव और पंडित आलोपीदीन के चरित्र की विशेषताएं बताई।
नमक का दारोगा कहानी का केंद्रीय भाव बताते हुए राम बरन नेता ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानी नमक का दारोगा उस समय से संबन्धित है जब भारत मे नमक बनाने और बेंचने पर कई तरह के टैक्स लगा दिए गए थे। इस कारण से सभी भ्रष्ट अधिकारियों की चांदी हो गई थी। जिससे नमक विभाग मे काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी अन्य बड़ें विभागों की तुलना मे बहुत मोटी ऊपरी कमाई कर रहे थे।
नमक के दारोगा कहानी के नायक पात्र मुंशी बंशीधर हैं। वे एक निर्धन और गरीब परिवार के सदस्य थे और परिवार के इकलौते कमाने वाले व्यक्ति थे। किस्मत से मुंशी बंशीधर को नमक विभाग में दारोगा के पद पर नौकरी मिल जाती है। उन्हें अतिरिक्त आमदनी के बहुत से मौके मिलने लगते हैं।
राम बरन नेता ने कहा कि
उस समय भ्रष्ट लोगों के लिए नमक विभाग बहुत सही था। मुंशी बंशीधर के वृद्ध पिता भी अनेक नसीहतें देते हैं। और उनके सामने गरीबी भी कई समस्याएं खड़ी करती है। लेकिन बंशीधर अपने ईमान पर डटे रहते हैं।
अकस्मात एक दिन उन्हे नमक की बहुत बड़ी तस्करी के बारे मे पता चलता है। बंशीधर तुरंत वहाँ पहुंच जाते हैं। पता चलता है कि इस तस्करी के पीछे वहां के सबसे बड़े जमींदार आलोपीदीन का हाथ है। इस मामले में पंडित आलोपीदीन को बुलाया जाता है। पंडित आलोपीदीन बहुत ही निडरता के साथ आता है।क्योंकि उसके मन मे ये बात थी कि हर दारोगा को पैसे के दम पर खरीदा जा सकता है। वे मुंशी बंशीधर को हजार रुपए रिश्वत के तौर पर पेश करते हैं। लेकिन बंशीधर तैयार नही होते हैं और पंडित आलोपीदीन को गिरफ्तार करने के हुक्म देते हैं। इससे रिश्वत की कीमत बढ़ती जाती है। और यह कीमत चालीस हजार रुपये तक पहुंच जाती है, लेकिन मुंशी जी का ईमान अब भी अडिग रहता है। पंडित आलोपीदीन गिरफ्तार कर लिए जाते हैं।
रथ थे
पूरे शहर मे पंडित आलोपीदीन की काफी बदनामी और बेइज्जती हो जाती है, इसके बावजूद पैसे के दम पर पंडित जी अदालत से बरी हो जाते हैं। और अपने रसूख से मुंशी बंशीधर को नौकरी से भी हटवा देते हैं। अब मुंशी बंशीधर की मुसीबतें और बढ़़ जाती हैं। पैसे की तंगी के साथ -साथ उन्हे घर वालों के गुस्से का सामना भी करना पड़ंता है।
एक दिन अचानक पंडित आलोपीदीन, मुंशी बंशीधर के घर आते हैं। और उनके सामने एक अच्छे वेतन मान वाली नौकरी का प्रस्ताव रखते हैं। आलोपीदीन, मुंशी बंशीधर की ईमानदारी और सच्चाई से बहुत ज्यादा प्रभावित थे, इसलिए उन्होने मुंशी बंशीधर को अपने पूरे व्यवसाय और संपत्ति की देखरेख के लिए प्रबंधक पद पर नियुक्त कर दिया था। गौरतलब है कि नमक का दारोगा कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व दो पहलू उभर कर सामने आते हैं। मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कथा “नमक का दारोगा” उस समय से संबधित है जब भारत में नमक के बनाने और बेंचने पर कर लगा दिया गया था। इससे भ्रष्ट लोगों की चांदी हो गई थी।
इस कहानी मे पंडित आलोपीदीन एक अमीर जमींदार होता है। और नमक तस्करी मे गिरफ्तार किया जाता हैं। उसके व्यक्तित्व मे कई पक्ष उभर कर आते हैं। उनमें से दो प्रमुख हैं जिससे पहला पैसे का अहंकार है। पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व मे ये उभर कर आता है की वह अमीर जमींदार है और उसे अपने पैसों का घमंड बहुत ज्यादा है। जब मुंशी बंशीधर जो दारोगा है पंडित आलोपीदीन को नमक तस्करी मे संलिप्त पाते हैं तो उन्हे बुलाते हैं। पंडित आलोपी दीन निडरता के साथ दारोगा के सामने आता है उसे पता होता है की ऐसा कोई दारोगा नही है जो उसके पैसे के सामने अपने ईमान का सौदा ना करे, वह मुंशी जी को 40 हजार रुपए तक की रिश्वत की पेशकश भी करता है लेकिन नाकामयाब रहता है।
राम बरन नेता कहते हैं, यहां तक एक बार उसके पैसो का अहंकार, ईमानदारी के सामने टूट जाता है। लेकिन उसकी यह आदत नही जाती है। अदालत में वह अपने तस्करी के आरोप को भी मानने से इंकार कर देता है। और पैसे के दम पर ही बाइज्जत बरी हो जाता है।
ईमानदारी की कद्र दूसरा केंद्रीय भाव है। पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व में ईमानदारी की कद्र की विशेषता भी उभर कर आती है। उसे पता होता है की ईमानदारी ही ऐसा गुण है, जो उसके कर्मचारियों में हो तो उसकी संपत्ति में काफी बढ़ोत्तरी होगी। इसीलिए वह मुंशी बंशीधर के घर जाकर स्वयं मुंशी जी के सामने जाकर नौकरी का प्रस्ताव रखता है। और उन्हें अपने समस्त व्यवसाय और संपत्ति के प्रबन्धक के पद पर नियुक्त करता है। इसी के साथ लोह पुरुष लव पुरुष लोह पुरुष रामबरन नेता कहते हैं कि आजादी की 77वीं वर्षगांठ पर भी देश अलोपीदीन जैसे चरित्र से मुक्त नहीं हुआ है।