– भारत के जाने माने हार्टिकल्चर विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि यूपी के 10 ख़ास उत्पादों की जीआई टैगिंग में है पनियाला
नजरिया न्यूज़ लखनऊ/उत्तर प्रदेश। कपिल देव सिंह लखनऊ ब्यूरो। औषधीय गुणों से भरपूर गोरखपुर का ख़ास फल पनियाला का पेड़ विलुप्त होता जा रहा है। जामुनी रंग का यह फल साइज में जामुन से कुछ बड़ा और लगभग गोल है। इसका स्वाद, कुछ खट्टा मीठा और थोड़ा सा कसैला होता है । इसी फल का नाम है “पनियाला”। आज से चार पांच दशक पूर्व यह फल गोरखपुर का विशिष्ट फल हुआ करता था। नाम के अनुरूप इसके स्वाद को याद कर इसे देखते ही मुंह में पानी आ जाता था। पर अब यह फल लुप्त होने के कगार पर है। ऐसे में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने खत्म हो रहे पनियाला फल के पेड़ के संरक्षण और उसे और खास बनाने की गंभीर पहल की है।
पनियाला फल को जल्द ही मिलेगा जीआई टैग :भारत के जाने माने हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञ पद्मश्री डॉक्टर रजनीकांत ने बताया कि उत्तर प्रदेश के जिन खास 10 उत्पादों की जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) पंजीकरण प्रक्रिया शुरू हुई है इसमें गोरखपुर का औषधीय गुणों से भरपूर खास फल पनियाला भी है। नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से गोरखपुर के एक एफपीओ और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी मार्गदर्शन में इन सभी उत्पादों का आवेदन जीआई पंजीकरण के लिए चेन्नई भेजा जा रहा है। जीआई टैग मिलने पर यह गोरखपुर का दूसरा विशिष्ट उत्पाद होगा। इससे पहले 2019 में गोरखपुर टेराकोटा को जीआई टैग मिल चुका है।
पनियाला फल के लिए संजीवनी साबित होगी जीआई टैगिंग: औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला फल के लिए जीआई टैगिंग संजीवनी साबित होगी। जीआई टैग मिलने से विलुप्त हो चले इस फल की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में डिमांड बढ़ जाएगी। सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह फल भी टेरोकोटा की तरह गोरखपुर का ब्रांड होगा। जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत उपयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह जीआई टैग किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है तथा विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है।
पूर्वांचल के लाखों किसान होंगे लाभान्वित:पनियाला फल की जी आई टैगिंग का लाभ गोरखपुर के किसानों समेत आस पास के देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के किसानों/ बागवानों को भी मिलेगा। क्योंकि यह सभी जिले समान एग्रोक्लाईमेटिक जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं। इन जिलों के कृषि उत्पादों की खूबियां भी एक जैसी होंगी।
चार पांच दशक पहले तक खूब मिलते थे पनियाला के पेड़ और फल:पनियाला के पेड़ 4-5 दशक पहले तक गोरखपुर में बहुतायत में मिलते थे। पर अब यह लगभग लुप्तप्राय है। यूपी स्टेट बायोडायवरसिटी बोर्ड की ई पत्रिका के अनुसार मुकम्मल तौर पर यह मालूम नहीं कि यह पनियाला कहां का पेड़ है।पर बहुत संभावना है की यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का ही है।
पनियाला की जड़ से लेकर फल तक में कई गुण:वर्ष 2011 में हुए एक रिसर्च के अनुसार पनियाला के पत्ते, छाल, जड़ों और फलों में एंटी बैक्टिरियल गुण बहुतायत में पाए जाते हैं । इस कारण इस पनियाला फल के इस्तेमाल से पेट के कई रोगों में लाभ मिलता है। पेट के कई रोगों के अलावा , दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खराश आदि में भी इसका इस्तेमाल स्थानीय स्तर पर किया जाता रहा है। पनियाला के फल लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाए गए हैं। इस फल को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है। इसका पेड़ लकड़ी जलावन और कृषि कार्यो के लिए भी उपयोगी है।
पनियाला की खेती/ बागवानी से बड़ा आर्थिक लाभ :परंपरागत खेती से अधिक लाभ देता है पनियाला। कुछ साल पहले करमहिया ग्राम सभा के करमहा गांव में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायो डायवरसिटी बोर्ड के आर दूबे गए थे। तब पारस के पास पनियाला फल के नौ पेड़ थे। अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे। प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये आय होती थी। अब तो ये दाम दोगुने या इससे अधिक होंगे। लिहाजा आय भी इसी अनुरूप बहुत होगी। खास बात यह है कि इसके पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है। लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है।
ऐसे दुर्लभ फल और अन्य वनस्पतियों में रुचि लेने वाले गोरखपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर आलोक गुप्ता के अनुसार पनियाला गोरखपुर का विशिष्ट फल है। शारदीय नवरात्रि के आस पास यह फ़ल बाजार में आता है।इस फल को सीधे खाएं तो इसका स्वाद मीठा एवं कसैला होता है। हथेली या उंगलियों के बीच धीरे धीरे घुलाने के बाद खाएं तो एकदम मीठा हो जाता है।