दुर्केश सिंह
विशेष संवाददाता, नज़रिया न्यूज।
करीब 4 साल बाद… मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गृहमंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में 163 साल पुराने 3 कानूनों में बदलाव के लिए बिल पेश किया। इसमें राजद्रोह कानून खत्म करना भी शामिल है। इस स्टोरी में जानेंगे कि क्या शीतकालीन सत्र के पहले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को कानूनी मान्यता मिल जाएगी। मुकदमों को जल्द निष्पादन के लिए प्रस्तावित कानून में क्या प्रावधान किया गया है?
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार साक्ष्य क़ानून में अब इलेक्ट्रॉनिक इंफ़ोर्मेशन को शामिल किया गया है। साथ ही गवाह, पीड़ित और आरोपी अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भी अदालत में पेश हो सकेंगे। अमित शाह ने कहा कि परिवर्तनों के साथ चार्जशीट दाख़िल करने से लेकर ज़िरह तक ऑनलाइन ही मुमकिन होगी।
कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी लाने के संबंध में, अमित शाह ने कहा कि उनका लक्ष्य अधिकांश मुकदमों को तीन साल के भीतर खत्म करने का है. ताकि बैकलॉग कम हो सके
अब बिल संसदीय समिति के सामने हैं जहां विपक्ष इन पर अपनी राय रखेगा. इन बिलों को लॉ कमिशन के पास भी भेजा जाएगा. इसके बाद ही इन्हें संसद में दोबारा लाया जाएगा, जहाँ इनपर बहस होगी और फिर इन्हें पारित किया जा सकेगा।
एक बार अंतिम प्रारूप सामने आए तभी पता चलेगा कि इन परिवर्तनों का मौजूद मुकदमों पर क्या असर पड़ेगा
साक्ष्य क़ानून में अब इलेक्ट्रॉनिक इंफ़ोर्मेशन को शामिल किया गया है। साथ ही गवाह, पीड़ित और आरोपी अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भी अदालत में पेश हो सकेंगे। अमित शाह ने कहा कि परिवर्तनों के साथ चार्जशीट दाख़िल करने से लेकर ज़िरह तक ऑनलाइन ही मुमकिन होगी।
नए विधेयक में फ़ॉरेंसिक के इस्तेमाल और मुकदमे की सुनवाई की टाइमलाइन भी तय कर दी गई है। मिसाल के तौर पर सेशन कोर्ट में किसी केस में ज़िरह पूरी होने के बाद, तीस दिन के भीतर जजमेंट देना होगा।इस डेडलाइन को 60 दिन तक बढ़ाया जा सकता है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल तीनों बिलों को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। राजद्रोह जैसे प्रावधान की सुप्रीम कोर्ट आलोचना कर चुका है। नए कानूनों में और सख्त प्रावधान किए गए हैं। ऐसे मुद्दों पर स्थायी समिति में विरोधाभास हो सकते हैं। शीत सत्र के पहले समिति की रिपोर्ट नहीं आई तो लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने पर बिल रद्द हो जाएंगे। हालांकि सरकार चाहेगी तो इस पर सहमति बन सकती है।
मोदी सरकार ने अंग्रेजों के बनाए इन 3 मूलभूत कानूनों को खत्म करके 3 नए कानून लाने का प्रस्ताव रखा है। ‘नए कानून’ सीरीज के पार्ट-1 में कहानी राजद्रोह कानून में हुए बदलावों की है।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली ने 2 अप्रैल 2019 को लोकसभा में कहा-‘ऐसा लगता है कि कांग्रेस में टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथी शामिल हो गए थे। इसीलिए कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में राजद्रोह कानून को खत्म करने का वादा किया गया है। ये वादा देश को तोड़ने वाला है, जिसे लागू नहीं किया जा सकता है।’
करीब 4 साल बाद… मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गृहमंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में 163 साल पुराने 3 कानूनों में बदलाव के लिए बिल पेश किया। इसमें राजद्रोह कानून खत्म करना भी शामिल है।
राजद्रोह कानून का जिक्र अभी इंडियन पीनल कोड यानी IPC की धारा 124 में है। NCRB के मुताबिक इस कानून के जरिए 2021 में 86 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी।
गृहमंत्री शाह ने लोकसभा में कहा है कि हम इस कानून को पूरी तरह से खत्म कर रहे हैं।
कई कानूनी एक्सपर्ट्स का मानना है कि नाम बदलने के बावजूद इस कानून में ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा। यह कानून नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है। कानूनी जानकार ऐसा क्यों कहते हैं, इसे समझने से पहले पुराने राजद्रोह कानून और नए कानून में अंतर जानना जरूरी है…
मोदी सरकार ने राजद्रोह कानून क्यों खत्म किया?
राजद्रोह कानून शुरुआत से ही सियासत का शिकार रहा है। अंग्रेजों के समय तिलक और गांधी ने और आजादी के बाद लोहिया जैसे नेताओं ने इस कानून का विरोध किया था।
कम्युनिस्ट सांसद डी. राजा ने इसे खत्म करने के लिए 2011 में राज्यसभा में प्राइवेट बिल पेश किया था। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इस कानून को खत्म करने का वादा किया था।
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक इस कानून के जन्मदाता देश ब्रिटेन में इस तरह के कानून को खत्म कर दिया गया है, इसीलिए भारत में भी बहुत समय से इसे खत्म करने की मांग हो रही थी।
NCRB के आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2021 के बीच इस कानून के तहत 428 मामले दर्ज हुए जिनमें 634 गिरफ्तारियां हुईं। आईपीसी की धारा 124-ए में अस्पष्टता की वजह से इस कानून का दुरुपयोग हो रहा था।
इसी वजह से मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के जरिए नए मामले दर्ज करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि जो लंबित मामले हैं, उन पर यथास्थिति रखी जाए। ऐसे में सरकार उन कानूनों के तहत केस नहीं दर्ज कर सकती थी।
नए तीन बिलों में औपनिवेशिक कानूनों की समाप्ति की बात कही जा रही है, इसीलिए राजद्रोह कानून का प्रावधान खत्म हो गया है। अब सरकार नए कानून के तहत केस दर्ज कर सकती है।
क्या नया कानून राजद्रोह से भी ज्यादा सख्त है?
संसद में पेश भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 के अनुसार कोई भी इरादतन या जानबूझकर बोले या लिखे शब्दों, संकेतों से, कुछ दिखाकर, इलेक्ट्रॉनिक संदेश से, वित्तीय साधनों के उपयोग से अगर देश में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों और अलगाववादी गतिविधियों की भावना को उकसाता है।
इसके अलावा अगर कोई भारत की संप्रभुता, एकता या अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे कार्य में शामिल होता है तो नए कानून के तहत अपराधी माना जाएगा। इसके तहत 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा के साथ जुर्माना भी हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक इन प्रावधानों से साफ है कि राजद्रोह का कानून नए तरीके से कानून की किताब में शामिल हो रहा है। इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा को 3 से बढ़ाकर 7 साल करने की वजह से नए प्रावधान पुराने कानून से ज्यादा सख्त साबित हो सकते हैं।
आईपीसी में चैप्टर-VI में राज्य के खिलाफ अपराधों के लिए 9 प्रावधान हैं। भारतीय न्याय संहिता के विधेयक में इसके लिए चैप्टर-VII में 12 प्रावधान किए गए हैं।
कानून प्रक्रिया को डिजिटल बनाने की कोशिश:
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानियों से भरे हुए थे, इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था, कुल 475 जगह ग़ुलामी की इन निशानियों को समाप्त कर हम नए कानून लेकर आए हैं। कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है।
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