– रुदल की वीरगो की खबर के बाद युद्ध मैदान में उतरे थे आल्हा, जो भी आया सामने, उसे करना पड़ा मौत का सामना
दुर्केश सिंह नज़रिया न्यूज विशेष संवाददाता, विजेथुआ धाम ।आल्हा एक लोकगाथा है जो कि मध्य भारत के बुंदेलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच काफी प्रचलित है। आल्हा ऊदल दो भाई थे। दोनों ही अपनी वीरता के लिए विख्यात थे।
यह जानकारी रविन्द्र नारायण शुक्ला, नंदमहर, मुसाफिर खाना, जिला अमेठी ने दी। वे 03सितंबर 2023 को सुल्तानपुर जिले के कादीपुर तहसील निवासी लौह पुरुष कंम्ययुनिष्ट 80 वर्षीय राम बरन नेता के विजेथुआ धाम स्थित निज निवास पर आल्हा गायक शिवकरण पांडेय के साथ आल्हा गा रहे थे।
उन्होंने कहा कि ढोलक पर साथ दे रहे मुन्ना लाल विश्वकर्मा और गायन में साथ दे रहे निरख शुक्ला भी उन्हीं के गांव नंदमहर, तहसील मुसाफिर खाना जिला अमेठी के निवासी हैं।
एक सवाल पर आल्हा गायक रबिंद्र नारायण शुक्ला ने कहा कि केरिया तीज-कीरत सागर की लड़ाई -पृथ्वीराज और ऊदल की लड़ाई रामबरन नेता के घर पर आयोजित समारोह में आज गाया हूं।
आल्हा गायक शुक्ला ने बताया कि जगनिक द्वारा रचित आल्हा काव्य में दोनों, आल्हा और रुदल की वीरता का वर्णन है।
सन 1182 के आसपास पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई करते समय उदल वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
उदल की वीरगति की खबर सुनकर आल्हा बहुत ज्यादा क्रोधित होते हैं तथा वह भी पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई करने के लिए युद्ध के मैदान में चले जाते हैं तथा मौत बनकर पृथ्वीराज चौहान की सेना के ऊपर टूट पड़ते हैं।जो भी उनके सामने आया या उनसे युद्ध करने की कोशिश की उसको उन्होंने मौत के घाट उतार दिया। यहां तक कि पृथ्वीराज चौहान को भी उन्होंने अपने सामने घुटने टेकने मजबूर कर दिए थे।